बदल जाएगी दांतों के इलाज की दुनिया

बदल जाएगी दांतों के इलाज की दुनिया

डॉक्‍टर आशुतोष कुमार झा

दशकों से दांतों की सफाई से लेकर उनके इलाज तक विज्ञान ने कई औजार हमारे सामने रखे हैं इसके बावजूद आज भी भारत में 5 वर्ष से लेकर 75 वर्ष तक के अलग-अलग आयु वर्ग में 50 से लेकर 84 फीसदी तक लोग दांतों के क्षय की समस्‍या से जूझ रहे हैं। इसके लिए कई कारक जिम्‍मेदार हो सकते हैं और इसमें से एक कारक यह भी है कि भारत में अव्‍वल तो स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र को ही सबसे कम महत्‍व दिया जाता है और उसमें भी मुंह से संबंधित बीमारियों को तो सबसे कम महत्‍व मिलता है। इसलिए डॉक्‍टरों के पेशे में भी दंत चिकित्‍सकों को बिलकुल अलग कर दिया गया है। ये स्थिति तब है जबकि ये स्‍थापित तथ्‍य है कि मुंह की समस्‍याएं हृदय रोग, गर्भावस्‍था, मधुमेह जैसी अन्‍य कई चीजों से सीधे जुड़ी हुई हैं।

खैर हमारा ये आलेख भारत में दांतों की बीमारियों के बारे में नहीं बल्कि विदेशों में दांतों की बीमारियों के लिए खोजे जा रहे नए इलाज के बारे में है जो कि आने वाले समय में पूरी दुनिया में दंत चिकित्‍सा का चेहरा बदलकर रख सकता है।

स्‍टेम सेल से इलाज 

हम बात कर रहे हैं लं‍दन के किंग्‍स कॉलेज में चल रहे स्‍टेम सेल शोध की जिसके शुरुआती परिणाम इतने उत्‍साह जनक हैं कि कहा जा रहा है कि आने वाले समय में सड़न वाले दांतों की सफाई के लिए रूट कैनाल जैसे ट्रीटमेंट और उसमें सिमेंट जैसा पदार्थ भरने की जरूरत ही शायद खत्‍म हो जाएगी और दांतों के अंदर की खाली जगह प्राकृतिक रूप से भर जाएगी।

नए दांत उगाने में मिल सकती है कामयाबी

इस शोध में दावा किया जा रहा है कि कोशिकाओं को उत्‍प्रेरित करने वाली दवा देने से दांत अपने मरम्‍मत खुद ही कर लेंगे। यदि इन स्‍मॉल मॉल‍िक्‍यूल दवाओं ने वैसा ही असर किया जैसा वैज्ञानिक उनसे उम्‍मीद लगाकर बैठे हैं तो भविष्‍य में न सिर्फ दांतों के टिश्‍यू बल्कि पूरी नई असली दांत तक उगाने में सफलता मिल जाएगी।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान में विश्‍व मुख स्‍वास्‍थ्‍य दिवस के अवसर पर आयोजित कॉन्‍फ्रेंस में एम्‍स के डेंटल सेंटर के प्रमुख डॉक्‍टर ओ.पी. खरबंदा ने कहा कि यदि लंदन में हो रहा ये स्‍टेम सेल शोध कारगर हुआ तो भविष्‍य में दांतों के इलाज की दशा ही बदल जाएगी। उन्‍होंने यह जानकारी भी दी कि एम्‍स के डेंटल सेंटर में अत्‍याधुनिक शोध केंद्र बनाया जा रहा है जिसमें स्‍टेम सेल रिजनरेटिव डेंटिस्‍ट्री का विभाग भी होगा। यानी नए ईलाज में अपना योगदान देने के लिए एम्‍स ने भी कमर कस ली है।

क्‍या है नया शोध

दांत के इलाज में अभी होता ये है कि यदि किसी दांत में सड़न या क्षय हुआ हो तो डॉक्‍टर रूट कैनाल के जरिये उसमें छेद कर सारा खराब पदार्थ बाहर निकाल देते हैं और खाली जगह को सिमेंट जैसे पदार्थ एमेल्‍गम से भर देते हैं। समय के साथ ये पदार्थ बाहर न निकल जाए इसलिए दांत के ऊपर कैप‍िंग कर दी जाती है। हालांकि कई बार ये पूरी प्रक्रिया सफल नहीं होती और समस्‍या जस की तस बनी रह जाती है। अब लंदन के शोधकर्ताओं ने ऐसी दवाओं का असर तलाशा है जो दांतों के पल्‍प (दांत के गहरे अंदर मौजूद सॉफ्ट पदार्थ जो तंत्रिकाओं और रक्‍त वाहिनियों से भरा होता है) में मौजूद स्‍टेम सेल को उत्‍प्रेरित करते हैं और ये स्‍टेम सेल दांत के गड्ढे को भरने के लिए पर्याप्‍त मात्रा में नए अस्थि उत्‍तकों का निर्माण करते हैं जिससे गड्ढे प्राकृतिक रूप से भर जाते हैं और दांत खुद ब खुद ठीक हो जाता है। भविष्‍य में डॉक्‍टर इस तकनीक से पूरे नए दांत तक उगाने की योजना बना रहे हैं। यानी नकली दांतों का जमाना खत्‍म होने वाला है।

कौन सी दवाओं पर निर्भर कर रहे हैं डॉक्‍टर

ये शोध किंग्‍स कॉलेज के प्रोफेसर डॉक्‍टर पॉल शार्प के नेतृत्‍व में हो रहा है। डॉक्‍टर शार्प की टीम स्‍टेम सेल को स्‍टीम्‍युलेट करने के लिए एक प्रायोगिक दवा टाइडग्‍लुसिब पर भरोसा कर रही है। सुरक्षा मानकों पर ये दवा खरी पाई गई और मूलत: इस दवा को अल्‍झाइमर्स के रोगियों पर आजमाया जा रहा है मगर दांतों के स्‍टेम सेल पर इसका असर देखकर ऐसा लगता है जैसे ये दवा भविष्‍य में दांतों के लिए ही इस्‍तेमाल होगी।

डॉक्‍टर शार्प की टीम ने टाइडग्‍लुसिब को अभी चूहों पर आजमाया है नतीजे उत्‍साह वर्धक हैं इसलिए इसी वर्ष से इसका मनुष्‍यों पर क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने की तैयारी की जा रही है। डॉक्‍टर शार्प कहते हैं कि दांतों के इलाज की तकनीक पिछले 100 सालों ने नहीं बदली है। आज भी पुराने तरीकों से ही इलाज हो रहा है। दांतों को भरने के लिए जो एमेल्‍गम इस्‍तेमाल होता है उसमें मर्करी मिला होता है। मर्करी लंबे समय तक टिकने वाला पदार्थ है मगर इसका हमारे मुंह में होना हमेशा से चिंता की बात रही है। इसे देखते हुए नए इलाज तलाशने की जरूरत है।

जाहिर है कि यदि ये शोध कारगर रहा तो भविष्‍य में हर दंत चिकित्‍सा में क्रांति की उम्‍मीद कर सकते हैं।          

(लेखक बिहार के पूर्णियां के वरिष्‍ठ दंत रोग विशेषज्ञ हैं)

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।